राजस्थान राजे रजवाड़ों की धरती के तौर पर पहचाना जाता है. यहां महल और किले ना हों, ये तो हो नहीं सकता, लेकिन इन्हीं महल और किलों में से एक जयपुर का नाहरगढ़ का किला अब धीरे-धीरे एक ऐसी रहस्यमयी जगह बनता जा रहा है, जिससे जुड़े राज लोगों को डराने लगे हैं. ये किला जितनी अपनी भव्यता, इससे जुड़े इतिहास और विशाल आकार के चलते दुनिया भर में मशहूर है, उतना ही अब यहां होने वाली रहस्यमयी घटनाओं की वजह से चर्चे में आता जा रहा है. हालत ये है कि यहां घूमने आने वाले लोग अक्सर कभी गायब हो जाते हैं, कभी किसी हादसे का शिकार हो जाते हैं, तो कभी उन्हें दर्दनाक मौत मिलती है.
इसी साल 1 सितंबर को नाहरगढ़ के किले में घूमने आए दो भाइयों में से एक की जान चली गई थी, जबकि दूसरा रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि वो दूसरा भाई दो महीने गुजरने के बावजूद अब भी लापता है. वो खुद ही कहीं चला गया, अपने छोटे भाई की तरह किसी हादसे का शिकार हो गया, किले के इर्द गिर्द मौजूद जंगली जानवरों ने उसकी जान ले ली या फिर उसके साथ कोई साज़िश हुई, ये फिलहाल कोई नहीं जानता. नाहरगढ़ के इस किले में मौत का शिकार बनने और गायब होने वाले दोनों भाइयों के बारे में ताजी जानकारी जानने से पहले इस किले के रहस्य के बारे में जान लीजिए.
वैसे तो नाहरगढ़ के इस किले से जुड़ी नई पुरानी कई रहस्यमयी और डरावनी कहानियां जुड़ी हैं, लेकिन हाल के सालों में जिन वारदातों ने लोगों को सबसे ज्यादा उलझाया है, उनमें 25 नवंबर 2017 की वो वारदात सबसे ऊपर है, जिसमें एक शख्स की लाश किले की प्राचीर से लटकती हुई मिली थी. चेतन सैनी. जी हां, यही नाम था उसका. सैनी इस किले में घूमने आया था. लेकिन बाद में उसकी लाश किले की दीवार से रस्सी के सहारे लटकती हुई मिली. उसके घरवालों को शक था कि चेतन की मौत हत्या है, लेकिन पुलिस के मुताबिक मामला खुदकुशी का था, क्योंकि हालात कुछ यही इशारे कर रहे थे. अब सवाल ये था कि आखिर चेतन ने खुदकुशी की, तो क्यों की और उससे भी बड़ा सवाल ये था कि खुदकुशी करने के लिए उसने इतनी अजीब और शहर से दूर से सुनसान सी जगह क्यों चुनी?
पुलिस ने चेतन के बारे में पूरी तफ्तीश की, तो पता चला कि उसकी न तो किसी से दुश्मनी थी और न ही उसकी कॉल डिटेल में ऐसा कुछ निकला जिस पर पुलिस को शक हो. ऐसे में यदि कत्ल वाली थ्योरी कमजोर पड़ रही थी, तो सुसाइड की थ्योरी में भी दम नजर नहीं आ था. हालांकि, चेतन के मोबाइल में उसकी एक सेल्फी जरूरी मिली जो घटना से कुछ समय पहले उसी नाहरगढ़ की प्राचीर पर खींची गई थी. लेकिन इस पूरे वाकये में जो बात सबसे अजीब थी, वो थी उसकी लाश के पास दीवारों पर ये लिखा होना… ‘चेतन तांत्रिक मारा गया’. सवाल ये था कि चेतन की जान क्या किसी पद्मावती ने ली. यदि हां, तो वो कौन थी?
जाहिर है, इस मौत का रहस्य अब भी अनसुलझा है. सिर्फ चेतन सैनी की मौत ही नहीं इससे पहले साल 2014 में एक कॉलेज स्टूडेंट की लाश भी इसी नाहरगढ़ के किले में मिली थी. उस मामले को भी पुलिस ने आत्महत्या का केस बताया था, लेकिन उस केस की गुत्थी भी अब तक नहीं सुलझी. अगले ही साल यानी साल 2015 में यहां आने वाले पर्यटकों के साथ कई घटनाएं हुईं. कभी कोई कार पलट गई, कभी किसी ने ऊपर से छलांग लगा दी, तो कभी कोई लापता हो गया. ऐसे में एडवेंचर और ट्रैकिंग के मशहूर नाहरगढ़ किला अब एक अबूझ पहेलियों का गढ़ बनता जा रहा है. लेकिन इन्हीं रहस्यमयी घटनाओं के सिलसिले में जो सबसे ताज़ी और सबसे अजीब वारदात है, वो है इस किले में घूमने आए दो भाइयों का अलग-अलग हादसों का शिकार होना, एक की लाश मिलना, दूसरे का लापता हो जाना.
दो महीने पहले इस रहस्य की शुरुआत रविवार, 1 सितंबर की सुबह 6 बजे हुई. शास्त्रीनगर, जयपुर के रहने वाले दो भाई राहुल और आशीष नाहरगढ़ की पहाड़ियों में ट्रैकिंग के लिए निकलते हैं. सुबह से दोपहर हो जाती है ट्रैकिंग ख़त्म नहीं होती और इस बीच दोनों भाई एक-एक कर अपने घर वालों को अपने-अपने मोबाइल फोन से कॉल कर बताते हैं कि वो रास्ता भटकने की वजह से एक-दूसरे से बिछड़ गए हैं. उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा कि वो कैसे वापस लौटें. दोपहर करीब 1.30 बजे. 23 और 19 साल के अपने दोनों बेटों के गुम हो जाने से परेशान राहुल और आशीष के घर वाले अब शहर के शास्त्रीनगर पुलिस स्टेशन पहुंचते हैं.
वहां वो पुलिस को पूरी कहानी सुनाते हैं. बताते हैं कि किस तरह उनके दो बेटे सुबह सवेरे नाहरगढ़ की पहाड़ियों में घूमने के लिए गए थे. उनका चरण मंदिर में दर्शन पूजन का भी प्लान था, लेकिन आगे बढ़ते-बढ़ते दोनों भाई ना सिर्फ एक दूसरे से बिछड़ गए, बल्कि रास्ता भी भटक गए. लेकिन शास्त्रीनगर की पुलिस बजाय उनकी मदद करने और लड़कों को ढूंढने की कोशिश करने के, थानों की सीमा में उलझ जाती है और हिसाब-किताब लगा कर बताती है कि ये मामला उनके यानी शास्त्रीनगर थाने का नहीं बल्कि शहर के ही ब्रह्मपुरी थाने का है. दोपहर क़रीब 3.30 बजे. अब परेशान घरवाले शास्त्रीनगर थाने से ब्रह्मपुरी थाने पहुंचते हैं.
वहां की पुलिस को फिर से वही सारी कहानी सुनाते हैं. लेकिन ब्रह्मपुरी पुलिस का रवैया भी ढीला-ढाला ही रहता है. आखिरकार जब इस वारदात की खबर इलाके के डीसीपी को मिलती है, तो फिर वो हरकत में आते हैं और पहले सिविल डिफेंस की एक टीम मौके पर भेजी जाती है और फिर पुलिस की अलग-अलग टीमें भी नाहरगढ़ की पहाड़ियों का रुख करती हैं. एक तो बारिश का मौसम और ऊपर डूबता हुआ सूरज. देखते ही देखते शाम हो जाती है, अंधेरा घिर आता है और रविवार का दिन सर्च ऑपरेशन की खानापूरियों में ही निकल जाता है. सोमवार, 2 सितंबर. इस दौरान घर वाले लगातार अपने बेटों से मोबाइल फोन पर बात करने की कोशिश करते रहते हैं.
कभी उनका फोन नॉट रिचेबल आता है, तो कभी फोन स्विच्ड ऑफ बताता है. परिवार के लोग लाख कोशिश करने के बावजूद राहुल और आशीष से संपर्क नहीं कर पाते. हालांकि तब तक पुलिस दोनों भाइयों के मोबाइल नंबर हासिल कर उनकी लास्ट लोकेशन के सहारे दोनों को लोकेट करने की कोशिश करती रहती है. अब सिविल डिफेंस के साथ-साथ स्टेट डिजाजस्टर रिलीफ फोर्स यानी एसडीआरएफ और नेशनल डिजास्टर रिलीफ फोर्स यानी एनडीआरएफ की टीमें में तलाशी अभियान में जुड़ जाती हैं. लेकिन इस अभियान को तब जोर का झटका लगता है कि जब अगले दिन 2 सितंबर को जंगल में गायब दो भाइयों में से एक छोटे भाई यानी 19 साल के आशीष की लाश मिल जाती है. जी हां, आशीष की लाश नाहरगढ़ के जंगलों में ही पड़ी थी. पुलिस की मदद से लाश को बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया जाता है.
इसी के साथ दो भाइयों की गुमशुगदी की ये मिस्ट्री थोड़ी और गहरा जाती है. वो मिस्ट्री जो अब तक सिर्फ गुमशुदगी तक सीमित थी, लेकिन अब उस मिस्ट्री में मौत भी शामिल हो चुकी थी. चूंकि दो में से एक भाई अब भी लापता है, एक लाश की बरामदगी की बाद भी सर्च ऑपरेशन जारी रहता है. बल्कि अब मौके की नज़ाकत को देखते हुए सर्च ऑपरेशन और तेज़ कर दिया जाता है. ड्रोन हेलीकॉप्टर के साथ-साथ कम से कम 200 लोग पूरे जंगल का और खास कर उस रूट का चप्पा-चप्पा छानने लगते हैं जिस रूट पर इन दोनों भाइयों के जाने और गुम होने का अंदेशा है. उधर, आशीष की मौत भी अपने-आप में एक मिस्ट्री है. सवाल ये है कि आखिर जंगल में गुम आशीष के साथ ऐसा क्या हुआ कि 24 घंटे गुजरते गुजरते उसकी लाश मिल गई. क्या उसका क़त्ल किया या फिर ऊंचाई से गिरने की वजह से उसकी मौत हुई.
पुलिस ने आशीष की लाश का पोस्टमार्टम कराया तो रिपोर्ट में मौत की वजह सिर में चोट लगने को बताई गई है. लेकिन ये चोट कैसे लगी? ये फिलहाल साफ नहीं है. पहली सितंबर से लेकर 6 सितंबर तक दोनों भाइयों की गुमशुदगी और एक की मौत की इस पहेली को अब छह दिन गुजर चुके हैं. लेकिन पुलिस से लेकर सारी एजेंसियों के हाथ खाली हैं. यानी रहस्य जस का तस है. पुलिस ने छोटे भाई का मोबाइल फोन तो बरामद कर लिया है, लेकिन ना तो बड़े भाई का कोई सुराग मिला है और ना ही उसके मोबाइल फोन का. इस बीच पुलिस ने दोनों के मोबाइल फोन की कॉल डिटेल रिकॉर्ड यानी सीडीआर की जांच भी की है. पुलिस को पता चला है कि दोनों भाई एक ही फाइनेंस कंपनी में काम करते थे. उस दिन दोनों की अपनी ही कंपनी में काम करने वाली एक लड़की से बात हुई थी.
ऐसे में अब पुलिस इस पहेली को भी सुलझाने में लगी है कि क्या दोनों की गुमशुदगी के पीछे सिर्फ जंगल में भटक जाने की वजह है या फिर इसके पीछे कोई रिश्तों की पेंच या कोई साज़िश है. नाहरगढ़ के इन जंगलों में दूसरे जानवरों के साथ-साथ खौफनाक पैंथर यानी तेंदुए भी मौजूद हैं. ऐसे में ऊपर वाला न करे अगर ये मान भी लिया जाए कि गायब दूसरे भाई के साथ ऐसा ही कोई हादसा हुआ है, तो भी जिस तरह से छोटे भाई की लाश मिलने वाली जगह के इर्द-गिर्द तीन से चार किलोमीटर के दायरे को पुलिस और दूसरी एजेंसियां छान रही हैं, उन हालात में अब तक बड़े भाई राहुल का भी पता चल जाना चाहिए था.
लाख कोशिश के बावजूद राहुल का कोई पता ठिकाना नहीं है. एक और हैरान करने वाली बात ये भी है कि जिस जगह से पुलिस ने 2 सितंबर को आशीष की लाश बरामद की, वो भी ट्रैकिंग वाले रूट से हट कर घने जंगलों के बीच है, जहां आम तौर पर ना तो लोग जाते हैं और ना ही वहां जाना आसान है. ऐसे में आशीष को क्यों और कैसे गया, ये भी एक बड़ा सवाल है. फिलहाल लड़कों के घर वाले यानी पीड़ित परिवार और शास्त्रीनगर के लोग जयपुर पुलिस के रवैये से खासे नाराज़ हैं. उनका कहना है कि जब 1 सितंबर को पहली बार उन्होंने पुलिस को दोनों भाइयों की गुमशुदगी की इत्तिला दी होती, अगर पुलिस ने सीमा विवाद में उलझने की बजाय तभी गंभीरता से तलाशी अभियान की शुरुआत कर दी होती, तो शायद आज दोनों भाई वापस लौट चुके होते. फिलहाल गुमशुदगी और मौत की ये मिस्ट्री गहराती जा रही है.
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