चीन के स्कूलों में कैसे पढ़ते हैं बच्चे, वोकेशनल स्टडीज पर होता है फोकस, जानिए कैसा है एजुकेशन स

चीन के स्कूलों में कैसे पढ़ते हैं बच्चे, वोकेशनल स्टडीज पर होता है फोकस, जानिए कैसा है एजुकेशन स

जॉब & एजुकेशन
चीन के स्कूलों में कैसे पढ़ते हैं बच्चे, वोकेशनल स्टडीज पर होता है फोकस, जानिए कैसा है एजुकेशन स

भारत के एजुकेशन सिस्टम के बारे में तो आपको पता ही है. कैसे यहां स्कूली एजुकेशन फ्री है, जबकि प्राइवेट स्कूल्स भी हैं. लेकिन क्या आपको चीन के एजुकेशन सिस्टम के बारे में मालूम है? हम आपको बताते हैं. दरअसल, चीन में भी शुरुआती शिक्षा अनिवार्य है. हालांकि सीनियर सेकेंडरी में पहुंचने के बाद बच्चों की फीस और स्कूल के खर्चे माता-पिता या अभिभावकों को देने पड़ते हैं. यह भी एक बड़ी वजह है कि ग्रामीण इलाकों में आर्थिक तंगी की वजह से बच्चे मिडिल स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं.  

चार चरण में है चाइना की स्कूलिंग

भारत में एजुकेशन 10+2+3 पैटर्न पर है. वहीं चीन में स्कूलिंग के ही चार चरण हैं. पहला प्री-स्कूल, फिर दूसरा प्राइमरी स्कूल, जहां बच्चों को साल पढ़ना होता है. फिर तीन साल जूनियर सेकेंडरी स्कूलिंग और फिर अगले तीन साल सीनियर सेकेंडरी स्कूलिंग की व्यवस्था है. चौथे चरण में आते-आते ज्यादातर छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं और जीविकोपार्जन यानी कमाने में लग जाते हैं. वहीं कुछ फीसदी छात्र दोबारा पढ़ाई शुरू कर देते हैं.

ऐसे अलग हैं भारत से चीन का एजुकेशन सिस्टम

चीन में बच्चों की पढ़ाई की शुरुआत छह साल की उम्र से होती है और बच्चे ग्रेड एक में छह साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू करते हैं. यह प्राइमरी एजुकेशन का हिस्सा होता है. वहीं भारत में ढाई साल और तीन साल से उनकी एजुकेशन शुरू हो जाती है. चीन में प्राइमरी एजुकेशन लेने के बाद बच्चों को जूनियर सेकेंडरी में भाग लेना होता है, जिसमें ग्रेड सात से ग्रेड नौ तक पढ़ाई कराई जाती है.

इसके बाद सेकेंडरी एजुकेशन की पढ़ाई करवाई जाती है, जिसमें कक्षा 10 तक की पढ़ाई करवाई जाती है. फिर पोस्ट सेकेंडरी की पढ़ाई करवाई जाती है, यहां स्कूली पढ़ाई 14वीं ग्रेड तक होती है. वहीं भारत में स्कूल पढ़ाई कक्षा 12वीं तक होती है. चीन में 14 वीं ग्रेड तक पढ़ाई होने के बाद बैचलर या मास्टर डिग्री पढ़ाई करवाई जाती है.

छात्रों को खुद डिसाइड करने का अधिकार

चीन के एजुकेशन सिस्टम में एक बात ये भी है कि यहां जूनियर मिडिल स्कूल के बाद छात्रों को खुद डिसाइड करने का अधिकार है कि उन्हें रेगुलर सेकेंडरी मिडिल स्कूल जाना है या वोकेशनल स्कूल जाना है या फिर सेकेंडरी प्रोफेशनल स्कूल. आगे की पढ़ाई के लिए वह स्वतंत्र होते हैं.

वोकेशनल स्टडी पर फोकस

जहां भारत में एकेडमिक एजुकेशन पर ध्यान दिया जाता है. वहीं चीन में वोकेशनल स्टडीज पर फोकस किया जाता है. यहां छात्र एजुकेशन के दौरान ही एक स्किल मैन पावर में कन्वर्ट हो जाते हैं. वोकेशनल स्टडीज में छात्रों को मशीन और टेक्नोलॉजी में कैसे काम करना है सिखाया जाता है, जिसका रिजल्ट ये होता है कि कॉलेज के दौरान ही चीन के छात्र बिजनेस माइंड से सोचने लगते हैं.

गाओकाओ एग्जाम

चीन में हायर एजुकेशन के लिए एक एंट्रेंस एग्जाम होता है, जिसे गाओकाओ कहते हैं.  यह एग्जाम नौ घंटे का होता है. आमतौर पर 40 फीसदी छात्र ये एग्जाम पास कर जाते हैं. इसी टेस्ट के आधार पर छात्रों को यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिलता है और सरकारी जॉब का रास्ता खुलता है. बता दें कि गाओकाओ को दुनिया की सबसे कठिन प्रवेश परीक्षा कहा जाता है.

Education Loan Information:
Calculate Education Loan EMI


Discover more from News Piller

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *