Red Wine Compound Kills Cancer Cells: क्या रेड वाइन में पाए जाने वाले कंपाउड रेस्वेरेट्रॉल से आंत का कैंसर ठीक हो सकता है. वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा संभव है. हालांकि पहले से ही लैबोरेटरी रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि रेड वाइन में पाए जाने वाले रेस्वेरेट्रॉल से आंत के कैंसर की कोशिकाओं को खत्म कर सकता है. रेड वाइन में जो कपाउड रेस्वेरेट्रॉल पाया जाता है वही कंपाउड अंगूर, ब्लूबेरी, रास्पबेरी और मूंगफली में भी पाया जाता है. लीसेस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता अब डाइरेक्ट कैंसर मरीजों में इस चीज का परीक्षण करेंगे कि रेस्वेरेट्रॉल क्या वाकई कैंसर मरीजों में कैंसर सेल्स को खत्म कर देंगे. इसके लिए टीम ने 60 जगहों पर 1300 रोगियों को परीक्षण में शामिल किया है. अगर ऐसा होता है तो आंत के कैंसर के इलाज में यह मील का पत्थर साबित हो सकता है.
एस्पिरिन और मेटफॉर्मिन का भी परीक्षण
आंत का कैंसर जिसे कोलोरेक्टल या कोलोन या रेक्टम कैंसर के रूप में भी जाना जाता है. यह एक प्रकार का कैंसर है जो बड़ी आंत में शुरू होता है, जिसमें कोलोन और रेक्टम शामिल होते हैं. शोधकर्ताओं की टीम कैंसर की संभावित रोकथाम के लिए अंगूर, ब्लूबेरी, रास्पबेरी और मूंगफली में पाए जाने वाले प्राकृतिक घटक रेस्वेराट्रोल नामक रसायन की जांच करेगी. ब्रिटेन के लीसेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए जा रहे परीक्षण में आंत कैंसर के लिए एस्पिरिन और मेटफॉर्मिन सहित कई संभावित रोकथाम दवाओं का भी परीक्षण किया जा रहा है.
रेड वाइन नहीं उसके कंपाउड का परीक्षण
हालांकि रेड वाइन पीने से कैंसर से बचाव नहीं होता है और यह एक बड़ा जोखिम कारक है, इसलिए स्टडी का मुख्य फोकस रेस्वेराट्रोल पर केन्द्रित था. लीसेस्टर विश्वविद्यालय में ट्रांसलेशन कैंसर अनुसंधान की प्रोफेसर करेन ब्राउन ने कहा, उन्नत स्क्रीनिंग विधियों के साथ आंत केर कैंसर का प्रारंभिक पता लगाना आसान हो गया है. उन्होंने आगे कहा कि आंत्र कैंसर को रोकने का सबसे अच्छा तरीका हमारी जीवनशैली में सुधार करना है. इसके लिए स्मोकिंग बंद करना, वजन कम रखना और हेल्दी आहार लेना है. ब्राउन ने कहा कि इन परिणामों का इस बात पर व्यापक प्रभाव हो सकता है कि हम उन लोगों में आंत्र कैंसर की रोकथाम कैसे कर सकते हैं, जिनमें उम्र बढ़ने पर यह रोग विकसित होने की सबसे अधिक आशंका रहती है. इस रिसर्च में टीम का लक्ष्य इंग्लैंड और वेल्स में 60 स्थानों पर 1,300 रोगियों को नामांकित करना है.
तीन साल तक परीक्षण
परीक्षण में भाग लेने वाले प्रतिभागियों के पॉलिप्स को निकाल दिया जाएगा और फिर उन्हें मुख्य ट्रायल में एस्पिरिन और मेटफॉर्मिन या उप-अध्ययन में रेस्वेराट्रोल या प्लेसिबो द्वारा उपचार दिया जाएगा. एस्पिरिन या एस्पिरिन और मेटफॉर्मिन लेने वाले लोग तीन साल तक रोजाना ये दवाएं लेंगे जबकि रेस्वेराट्रोल या डमी टैबलेट लेने वाले लोग एक साल तक इसे लेंगे. इसके बाद सभी समूहों को कोलोनोस्कोपी की जाएगी ताकि यह देखा जा सके कि क्या पॉलीप्स फिर से बढ़ने लगे हैं और यदि ऐसा है तो ट्रायल की शुरुआत में हटाए गए पॉलीप्स की तुलना में वे कितने बड़े हैं. अगर ट्रायल सफल रहा, तो एनएचएस बाउल स्क्रीनिंग प्रोग्राम के लिए योग्य लोगों को टेस्ट किए गए किसी भी इलाज की पेशकश की जा सकती है. इससे बाउल पॉलीप्स बनने की संभावना कम हो सकती है और भविष्य में बाउल कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है. (इनपुट-आईएएनएस)
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Tags: Health, Health News, Health tips, Trending news
FIRST PUBLISHED : November 11, 2024, 16:17 IST
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