यूपी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन रहे वसीम रिजवी ने तीन साल पहले इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म कबूल कर लिया था. इसके बाद उन्हें जितेंद्र नारायण त्यागी के नाम से जाना जाने लगा. लेकिन अब उन्हें जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर के नाम से जाना जाएगा.
वसीम रिजवी पहले मुस्लिम थे. जितेंद्र नारायण त्यागी बनने पर ब्राह्मण हो गए. और अब जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर बनने पर अब वो ठाकुरों में गिने जाएंगे.
त्यागी से सेंगर बनने पर ऐसा कहा जा रहा है कि उन्होंने अपनी जाति बदल ली. मगर ऐसा साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ कर दिया था कि कोई व्यक्ति धर्म बदल सकता है, लेकिन जाति नहीं, क्योंकि जाति जन्म से जुड़ी होती है.
क्या जाति नहीं बदली जा सकती?
अप्रैल 2016 में इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई व्यक्ति अपना धर्म या आस्था तो बदल सकता है, लेकिन जाति नहीं, क्योंकि जाति बचपन से जुड़ी होती है.
दरअसल, पंजाब के मशहूर गायक मोहम्मद सादिक ने इस्लाम छोड़ सिख धर्म कबूल कर लिया था. वो डूम कम्युनिटी से आते हैं, जो पंजाब की अनुसूचित जाति है. 2012 के विधानसभा चुनाव में सादिक ने कांग्रेस के टिकट पर भदौड़ सीट से चुनाव लड़ा और जीता. उनकी जीत को अकाली दल के उम्मीदवार दरबारा सिंह ने चुनौती दी. दरबारा सिंह ने दलील दी कि सादिक मुसलमान हैं, इसलिए वो एससी के लिए रिजर्व सीट से चुनाव नहीं लड़ सकते.
सादिक ने अपना नाम भी नहीं बदला था, सिर्फ धर्म बदला था. मामला हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट में गया. तब सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया था कि जरूरी नहीं कि धर्म बदलने वाला व्यक्ति अपना नाम भी बदले.
उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘जरूरी नहीं कि अगर कोई व्यक्ति कोई धर्म अपना रहा है तो उसका पूरा परिवार भी उस धर्म को अपनाए. ये स्थापित कानून है कि कोई व्यक्ति अपना धर्म और आस्था बदल सकता है, लेकिन उस जाति को नहीं, जिससे वे संबंधित है. क्योंकि जाति का जन्म से संबंध है.’
जाति नहीं, सिर्फ सरनेम बदल सकते हैं!
किसी भी व्यक्ति की जाति का पता उसके सरनेम से चल जाता है. ऐसा ही एक मामला दिल्ली हाईकोर्ट में आया था. तब हाईकोर्ट ने कहा था कि सरनेम बदला जा सकता है, मगर जाति नहीं.
ये मामला पिछले साल कोर्ट में आया था. तब सीबीएसई के दो छात्रों ने अपनी 10वीं और 12वीं की मार्कशीट में पिता का सरनेम बदलने की अर्जी दी थी. सीबीएसई ने ऐसा करने से मना कर दिया था तो मामला हाईकोर्ट पहुंचा. दोनों छात्र भाई थे और उनका कहना था कि सरनेम की वजह से जातिगत उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.
हाईकोर्ट ने सीबीएसई को सर्टिफिकेट में सरनेम बदलने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था, अगर कोई व्यक्ति भेदभाव से बचने के लिए चाहता है कि उसे उसकी जाति से न पहचाना जाए, तो ये उसका अधिकार है. उन्हें ऐसी पहचान रखने का पूरा अधिकार है, जो उन्हें समाज में एक प्रतिष्ठित और सम्मानजनक पहचान दे.
हाईकोर्ट ने साफ कर दिया था कि सरनेम बदलने से उनकी जाति नहीं बदलेगी.
धर्म बदलने पर क्या होती है जाति?
अगर कोई व्यक्ति हिंदू से मुस्लिम या ईसाई बनता है तो वहां जाति का ज्यादा मसला नहीं होता. अगर कोई दलित या आदिवासी हिंदी से मुस्लिम या ईसाई बनता है तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलता.
वो इसलिए क्योंकि 1950 का प्रेसिडेंशियल ऑर्डर कहता है कि अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण का लाभ वही ले सकता है, जो हिंदू होगा. इसमें बौद्ध और सिख दलितों को भी जोड़ा गया है. इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. मामला कोर्ट में ही है. इस आदेश को असंवैधानिक बताया गया है. साथ ही मांग की गई है कि धर्म बदलकर मुस्लिम-ईसाई बन चुके दलितों को भी आरक्षण का लाभ मिले.
केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था कि अनुसूचित जाति के लोग ईसाई या इस्लाम धर्म इसलिए कबूलते हैं, ताकि वो छुआछूत जैसी व्यवस्था से बाहर आ सकें. क्योंकि ईसाई और इस्लामी समाज के लोगों को कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन और उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है.
वहीं, एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि अगर कोई व्यक्ति धर्म बदलकर वापस अपने पुराने धर्म में आता है, तो उसे उसकी जाति भी मिल जाएगी.
2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया था कि किसी व्यक्ति को हिंदू धर्म में वापसी पर अनुसूचित जाति का लाभ दिया जा सकता है, अगर उस जाति के लिए उसे अपना लें. लेकिन ऐसे व्यक्ति को साबित करना होगा कि उसके पूर्वज किसी अन्य धर्म को अपनाने से पहले उसी जाति के थे. साथ ही उसे ये भी साबित करना होगा कि वापसी के बाद उसे उस समुदाय ने अपना लिया है.
कुल मिलाकर जाति को नहीं बदला जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने भी जाति को जन्मजात माना है.
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