सत्य व्यास ने लेखक से लेकर स्क्रिप्टराइटर तक का सफर तय किया है। अब उनकी किताब पर फिल्में बन रही हैं। वेब सीरीज ‘ग्रहण’ भी उन्हीं की लिखी एक किताब पर बनी थी। हाल ही में उन्होंने नवभारत टाइम्स के रंगमंच क्लब में अपनी फिल्मों के बारे में बात की:
– आपकी पुस्तक के ऊपर एक वेब सीरीज ग्रहण आई। जब आपको यह ऑफर मिला तो उस समय मन में क्या सवाल थे?
अपनी दो-तीन किताबों के आने के बाद मैंने सोचा कि अब कॉलेज की कहानियों से अलग कुछ लिखना चाहिए। तो मैंने एक कहानी चौरासी लिखी जो दंगो पर बेस्ड थी। उस समय मैं ओडिशा में नौकरी कर रहा था। मेरे पास मुंबई से कॉल आया कि हम दिल्ली दरबार पर फिल्म करना चाहते हैं। उन्होंने मेरे वहां आने का प्रबंध किया। दो-तीन दिन के अंदर ही मेरे पास टिकट और सभी चीजें आ गईं।’
‘एक लेखक, जो लिख रहा हो और सीख भी रहा हो, उसके लिए यह बहुत बड़ी बात होती है। मैं वहां गया, फिर मीटिंग हुई। इसका मुझ पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उसके कुछ समय बाद एक फिल्म फेस्टिवल में मेरी किताब चौरासी सेलेक्ट हुई थी। उसके बाद हमारे पास एक बड़े प्रोडक्शन हाउस का कॉल आया कि हम लोग इस पर फिल्म करना चाहते हैं। इसके बाद मेरे सामने पटकथा लेखन का रास्ता खुला।’
– जब एक लेखक स्क्रिप्टराइटर बन जाता है तो उसका असर उसके लेखन पर भी आता है। लेकिन आपने बहुत कुशलता से दोनों चीजों को संभाला हुआ है। इस पर बताएं
लेखक को यह समझना होता है कि लेखन और स्क्रिप्ट राइटिंग दो बिल्कुल अलग चीजें हैं। लेखन जो है ना, उसमें आप अकेले राजा हैं। दिन-रात समय का कोई बाउंडेशन नहीं है। आपको जो लिखना है, उसे रोकने वाला कोई नहीं है। पांच-दस प्रतिशत सुधार आपका संपादक करा सकता है। लेकिन जब स्क्रिप्टराइटिंग में एक साथ सौ लोग लगे हुए हैं, तब आपके लिखने से शूट होने तक आपका रोल जरूरी है। आपको तुरंत ही सब कुछ ठीक करना होता है। स्क्रिप्टराइटिंग में आपकी कहानी में बदलाव भी होता है, जिसको लेकर कई लेखक नाराज हो जाते हैं।
मैं इस मामले में थोड़ा अलग सोचता हूं। मैं कहता हूं कि आप मुझे समझा दीजिए कि बदलाव क्यों जरूरी है, फिर चाहे जितना मर्जी बदलें। इन सब चीजों को शुरुआत में ही डील कर लेना चाहिए। जो लेखक इस बात को समझता है, वह बहुत अच्छा करता है।
– जब आप पुस्तक लिख रहे होते हैं तो वहां पर सौ प्रतिशत क्रेडिट आपका है। लेकिन जब स्क्रिप्टराइटिंग के फील्ड में जाते हैं तो वहां पर क्रेडिट पर काफी विवाद देखने को मिलता है। इस बारे में बताएं।
बिल्कुल, फिल्म इंडस्ट्री में क्रेडिट की मारामारी है। डायरेक्टर का और लेखक का नजरिया दोनों अलग होता है। जैसे कि अगर ‘बनारस टॉकीज’ पर मुझे फिल्म बनानी है, तो मैंने तो लिखी है। मुझे पता है कि यह घटना कैसे घटित हुई। लेकिन किसी डायरेक्टर को वह कहानी दी जाए, वह पहले सोचेगा कि कैसे क्या हुआ होगा? और फिर शूट करेगा। तो जब वह सोचता है, उसके मन में कुछ बदलाव आएंगे ही। अब उसके जहन में आता है कि मैंने तो इसमें बदलाव किया है, तो इसका क्रेडिट मुझे मिलना चाहिए।’
‘ऊपर से मुंबई इतना महंगा शहर है कि लेखक को तो सिर्फ यहां सर्वाइव करने में ही काफी दिक्कतें आती हैं। बहुत सारे लेखक होते हैं जो पैसों के बदले अपनी कहानी दे देते हैं। इंटरनेट आने के बाद फिर भी यह चीजें खुलकर आने लगी हैं। कई बार क्रेडिट के लिए याद दिलाना पड़ता है। मेकर्स मौके पर रहते हैं कि अगर याद नहीं दिलाएगा तो काम चला लेंगे।’
– आने वाले समय में आपकी कौन-कौन सी किताबों पर फिल्म या वेब सीरीज आ रही हैं? इसके अलावा स्क्रीन राइटिंग में भी आगे के प्लान के बारे में बताइए।
दिल्ली दरबार पर अगले साल एक फिल्म आएगी। साथ ही उफ कोलकाता पर भी एक फिल्म आने वाली है। दोनों के लिए मैंने स्क्रीनप्ले वगैरह लिख दिया है।
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