जेंडर न्यूट्रल है पॉक्सो एक्ट, लड़के-लड़कियों दोनों पर लागू
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत बताते हैं कि POCSO का मतलब है यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम जो 2012 में बना था। यह बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों को अपराध बनाता है। यह कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होता है। यह कानून पूरी तरह जेंडर न्यूट्रल है। रेप से यह इसी मामले में अलग माना जाता है।
बच्चों का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी में करने पर 7 साल तक जेल
पोक्सो कानून के तहत बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। इस कानून के तहत अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए करता है तो उसे पांच से सात साल की जेल हो सकती है।
क्या एकता कपूर भी जा सकती हैं जेल
एडवोकेट अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि अगर मामले में पॉक्सो के तहत पीड़िताओं के बयान दर्ज किए गए हैं और जांच में ये आरोप सही पाए जाते हैं तो एकता कपूर को पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 14 के तहत पोर्नोग्राफिक कंटेंट के लिए नाबालिग के इस्तेमाल पर पहली बार 5 साल तक की जेल हो सकती है। इसमें जुर्माना भी है। दोबारा ऐसे मामलों में पाए जाने पर 7 साल तक की जेल हो सकती है। क्योंकि ऐसे मामलों में नाबालिग को आपत्तिजनक रूप से फिल्माना या उसका गंदे तरीके से वीडियो बनाना यौन अपराध की ही कैटेगरी में आएगा। ऐसे में आरोपी को 7 साल तक की जेल हो सकती है।
बच्चों के गंदे वीडियो और फोटो रखने पर भी जेल
अनिल सिंह बताते हैं कि सेक्शन 15 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफो कंटेंट को स्टोर करता है। उसका डिस्प्ले करता है या किसी के साथ साझा करता है, तो उसे 3 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकती है।
बच्चों पर यौन हमला करने वाले को 10 साल जेल
पीड़ित बच्चे को तुरंत राहत या पुनर्वास के लिए अंतरिम मुआवजा मिल सकता है, जो कोर्ट तय करेगा। इस कानून के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर जांच और अभियोजन में बच्चों के अनुकूल उपाय प्रदान किए जाते हैं। इस कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति यौन हमला करता है तो उसे कम से कम 10 साल की जेल हो सकती है।
12 साल से कम उम्र के बाल यौन अपराधों में मृत्युदंड तक
बच्चों के साथ होने वाले ऐसे अपराधों को रोकने के उद्देश्य से बच्चों के यौन शोषण के मामलों में मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने की दिशा में वर्ष 2019 में पॉक्सो अधिनियम की समीक्षा करके इसमें संशोधन किया गया। इस अधिनियम में अपराध की गंभीरता के आधार पर न्यूनतम 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। पॉक्सो एक्ट में संशोधन के बाद यह फैसला लिया गया कि अगर कोई 12 साल से कम उम्र की लड़किर्यों के साथ दुष्कर्म का दोषी पाया जाता है तो दोषी व्यक्ति को मौत की सजा दी जा सकती है। साथ ही यदि किसी व्यक्ति पर नाबालिग बच्चे के साथ यौन शोषण जैसे अपराध करने के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है तो उसे किसी भी प्रकार से जमानत नहीं दी जा सकती।
पुलिस फोर्स में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व
POCSO अधिनियम में बच्चे के निवास या पसंद के स्थान पर एक महिला उप-निरीक्षक द्वारा प्रभावित बच्चे का बयान दर्ज करने का प्रावधान है। ऐसी स्थिति में जब पुलिस बल में महिलाओं की संख्या केवल 10% है। इस प्रावधान का अनुपालन करना व्यावहारिक रूप से असंभव है, साथ ही कई पुलिस स्टेशनों में तो मुश्किल से ही महिला कर्मचारी मौजूद हैं।
जांच में खामियां अब भी मौजूद
एडवोकेट अनिल सिंह बताते हैं कि पॉक्सो मामलों में ऑडियो-वीडियो का इस्तेमाल करके बयान दर्ज करने का प्रावधान है। हालांकि, फिर भी कुछ मामलों में जांच और अपराध के संरक्षण को लेकर खामियां बरकरार हैं।
अपराध स्थल की फोटो और वीडियो होना जयरी
शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2018) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जघन्य अपराधों के मामलों में जांच अधिकारी का कर्तव्य है कि वह अपराध स्थल की तस्वीर ले और उसकी वीडियोग्राफी करे। साथ ही उसे साक्ष्य के रूप में सहेज कर रखे।
न्यायिक मजिस्ट्रेटों को मुकदमे में न बुलाया जाना
पॉक्सो एक्ट का एक प्रावधान यह भी है कि न्यायिक मजिस्ट्रेट अभियोजक के बयान की रिकॉर्डिंग को अनिवार्य रूप से करेगा। आमतौर पर ऐसे बयान ज्यादातर मामलों में दर्ज किए जाते हैं। लेकिन, न तो न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुकदमे के दौरान पूछताछ के लिए बुलाया जाता है और न ही बयान से मुकरने वालों को दंडित किया जाता है। ऐसे में इस तरह के बयान खारिज हो जाते हैं।
आरोप-पत्र दाखिल करने में देरी भी बड़ी चुनौती
POCSO अधिनियम के अनुसार, अधिनियम के तहत दर्ज मामले की जांच अपराध होने या अपराध की रिपोर्टिंग की तिथि से एक माह की अवधि के भीतर करना आवश्यक है। हालांकि, व्यावहारिक रूप से पर्याप्त संसाधनों की कमी, फोरेंसिक साक्ष्य प्राप्त करने में देरी या मामले की जटिलता जैसे विभिन्न कारणों से जांच पूरी होने में कई महीने लग जाते हैं।
तो 20 साल लग जाएंगे केस निपटाने में
फास्ट ट्रैकिंग जस्टिस के अनुसार, 2017 में एक स्टडी कराई गई थी। इसके मुताबिक अगर पॉक्सो के नए केस सामने न आएं तो 2016 तक के लंबित केसों को निपटाने में 20 साल लग जाएंगे।
लंबित केसों में हो रही बढ़ोतरी
2020 में पॉक्सो के मामले 2,81,049 थे। जो 2022 तक आते-आते 4,17,673 हो गए। 2020 में केवल 6 फीसदी मामलों का निपटारा किया जा सका। 2021 में 7 फीसदी केसों का निपटारा किया गया।
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