क्या सच में श्राद्ध में नए कपड़े खरीदने से नाराज होते है हमारे पूर्वज!
हिन्दू धर्म : पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) का हिंदू धर्म में एक विशेष समय होता है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए श्राद्ध कर्म और पूजा करते हैं। इस दौरान कुछ परंपराएं और मान्यताएं हैं, जिनमें से एक यह है कि पितृ पक्ष में नए कपड़े नहीं खरीदे जाते। इसका धार्मिक, सांस्कृतिक, और भावनात्मक कारण है। आइए जानते हैं क्यों है श्राद्ध के दिनों में कपड़े खरीदने में मनाही|
शोक और पितरों का सम्मान:
पितृ पक्ष में पूर्वजों के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने का समय माना जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ध्यान करते हैं और उनके प्रति सम्मान दिखाते हैं। शोक और शांति
की भावना को ध्यान में रखते हुए, इस समय नए कपड़े, आभूषण, और अन्य सामग्री खरीदने से परहेज किया जाता है। नए कपड़े खरीदना और उत्सव मनाना इस समय की गंभीरता के साथ मेल नहीं खाता।
सादगी का प्रतीक:
पितृ पक्ष के दौरान सादगी अपनाने और दिखावे से दूर रहने की परंपरा है। नए कपड़े पहनना या खरीदना वैभव और विलासिता का प्रतीक माना जाता है, जो इस समय की आध्यात्मिक ऊर्जा के विपरीत है। इस समय लोग साधारण वस्त्र पहनते हैं और पूजा-पाठ करते हैं, जो सादगी और श्रद्धा का प्रतीक है।
पूर्वजों की आत्मा की शांति:
पितृ पक्ष के दौरान माना जाता है कि पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं और अपने वंशजों से आशीर्वाद लेने और उनके द्वारा किए गए कर्मों को स्वीकार करती हैं। इस समय व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं के बजाय आध्यात्मिक कार्यों पर ध्यान देता है, जैसे कि दान, पूजा, और प्रार्थना। नए कपड़े और भौतिक वस्त्रों की खरीदारी
इस श्रद्धा और भक्ति के समय में भौतिकता की ओर ध्यान केंद्रित करने का संकेत हो सकती है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जाता।
मान्यता और परंपराएं:
कई स्थानों पर यह माना जाता है कि पितृ पक्ष में कोई नया कार्य या निवेश (जैसे घर खरीदना, शादी की योजना बनाना, या नए कपड़े खरीदना) शुरू नहीं करना चाहिए क्योंकि यह समय पितरों की सेवा और श्रद्धा अर्पित करने का होता है।
नए वस्त्र या सामग्री खरीदना एक शुभ कार्य माना जाता है, और पितृ पक्ष को धार्मिक दृष्टिकोण से अशुभ समय के रूप में देखा जाता है, इसलिए लोग इसे इस समय टालते हैं।
ध्यान और शांति का समय:
पितृ पक्ष ध्यान, साधना, और अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का समय है। नए कपड़े खरीदने और पहनने से ध्यान भटक सकता है और यह शांति और साधना की भावना के विपरीत होता है। पितृ पक्ष में नए कपड़े नहीं खरीदने की परंपरा मुख्य रूप से शोक, सादगी, और पूर्वजों के प्रति सम्मान की भावना से जुड़ी होती है।
इस समय को भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहकर आध्यात्मिक कार्यों में समर्पित करने की मान्यता होती है। हालांकि, यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, और हर व्यक्ति इसे अपने विश्वास और अनुशासन के अनुसार पालन कर सकता है।
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